
Swami Vivekananda Jayanti 2025: भारत के गौरवस्वामी विवेकानंद की 162वीं जयंती पर जानें उनसे जुड़ी ये रोचक बातें
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Anjali
- January 12, 2025
Swami Vivekananda Jayanti 2025: आज हम उन महापुरुष की बात करेंगे जिन्होंने ना केवल भारत को, बल्कि पूरे विश्व को अपने विचारों से आलोकित किया। जी हाँ, मैं बात कर रही हूँ स्वामी विवेकानंद की, जिनकी जयंती को हम राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं। राजनीति से परे स्वामी विवेकानंद एक ऐसी शख्सियत रहे जो आज भी युवाओं को कठिन परिश्रम के बल पर जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करते हैं। भारत के महान आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती हर साल 12 जनवरी को मनाई जाती है। इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जीवन प्रेरणा का अद्भुत स्रोत है, जो युवाओं को सफलता के पथ पर आगे बढ़ने की सीख देता है।
रामकृष्ण परमहंस के मार्गदर्शन में कि प्रगति
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। बचपन से ही वे एक जिज्ञासु और आत्मनिर्भर व्यक्ति थे, जिनमें गहरी धार्मिक रुचि थी। उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उनके संघर्षों ने ही उन्हें एक महान संत और विचारक बना दिया। स्वामी विवेकानंद के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिले। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को जीवन की वास्तविकता और मानवता का सही मार्ग बताया। वे उन्हें हमेशा यही सिखाते थे कि धर्म केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवता की सेवा और आत्मकल्याण का मार्ग है। स्वामी विवेकानंद ने इस शिक्षा को आत्मसात किया और इसे अपने जीवन का उद्देश्य बनाया।

विवेकानंद के सन्यासी बनने की कहानी
स्वामी विवेकानंद की माता धार्मिक स्वभाव की थी और पूजा-पाठ में गहरी रुचि रखती थीं। नरेंद्र नाथ बचपन से ही अपनी माता के धार्मिक आचरण और नैतिकता से प्रभावित थे। यही कारण था कि मात्र 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने सांसारिक मोह-माया को त्याग कर संन्यास का मार्ग अपना लिया और ज्ञान की खोज में निकल पड़े। उनका जीवन युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। इसलिए स्वामी विवेकानंद की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।
अलग-अलग क्षेत्रों में था प्रभाव
विवेकानंद ने कई अलग-अलग क्षेत्रों से दैवीय प्रभाव था। वह 1880 में ब्रह्म समाज के संस्थापक और रवींद्रनाथ टैगोर के पिता देबेंद्रनाथ टैगोर से मिले थे। जब उन्होंने टैगोर से पूछा कि क्या उन्होंने भगवान को देखा है, तो देबेंद्रनाथ टैगोर ने जवाब दिया, मेरे बच्चे, आपके पास योगी की आंखें हैं।
विवेकानंद की जान बचाने वाले फकीर की कहानी
1890 में, स्वामी विवेकानंद हिमालय की यात्रा कर रहे थे। इस दौरान उनके साथ स्वामी अखंडानंद भी थे। एक दिन, काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न विवेकानंद को आत्मज्ञान की अनुभूति हुई। यात्रा जारी रखते हुए, जब वे अल्मोड़ा से करबला कब्रिस्तान के पास पहुंचे, तो थकान और भूख के कारण वे अचेत होकर गिर पड़े। एक फकीर ने उन्हें खीरा खिलाया, जिससे वे फिर से होश में आए। यह घटना उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण और प्रेरक कहानी बन गई।
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