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मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर रोक: सूखा और महंगाई के कारण बड़ा फैसला

मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर रोक: सूखा और महंगाई के कारण बड़ा फैसला

मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर रोक: सूखा और महंगाई के कारण बड़ा फैसला

 

मोरक्को के राजा मोहम्मद VI ने इस वर्ष की बकरीद (ईद अल-अजहा) पर जानवरों की कुर्बानी पर रोक लगाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। यह कदम देश में पिछले सात वर्षों से जारी सूखा और बढ़ती महंगाई के कारण उठाया गया है।

 

मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर रोक

 

राजा मोहम्मद VI ने एक शाही संदेश के माध्यम से नागरिकों से अपील की कि वे इस वर्ष बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी न करें। उन्होंने कहा, "हमारे देश में सूखा और आर्थिक चुनौतियाँ हैं, जिससे पशुओं की संख्या में भारी कमी आई है और मांस की कीमतें आसमान छू रही हैं।" इसलिए, उन्होंने स्वयं इस वर्ष की कुर्बानी करने का निर्णय लिया है।

 

सूखा और महंगाई का प्रभाव

 

मोरक्को में पिछले सात वर्षों से सूखा जारी है, जिससे पशुओं की संख्या में 38% की गिरावट आई है। इस वर्ष वर्षा 53% कम हुई है, जिससे चारा की कमी और मांस की कीमतों में वृद्धि हुई है। अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, विशेष रूप से निम्न आय वर्ग पर। 

 

धार्मिक दृष्टिकोण

 

इस्लाम में बकरीद पर कुर्बानी देना एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। हालांकि, राजा मोहम्मद VI ने इसे एक "सुनत" (अनुशंसित कार्य) के रूप में प्रस्तुत किया, जो परिस्थितियों के अनुसार अनिवार्य नहीं है। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे इस वर्ष इबादत, दान और परिवारिक संबंधों के माध्यम से ईद मनाएं।

 

मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया

 

मोरक्को के नागरिकों ने इस निर्णय का मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ ने इसे समझदारीपूर्ण कदम बताया है, जबकि कुछ ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के रूप में देखा है। हालांकि, अधिकांश ने इसे आर्थिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों के मद्देनज़र उचित माना है।

 

वैश्विक परिप्रेक्ष्य

 

यह पहली बार नहीं है जब मोरक्को ने बकरीद पर कुर्बानी पर रोक लगाई है। इससे पहले 1963, 1981 और 1996 में भी सूखा और आर्थिक संकट के कारण ऐसा निर्णय लिया गया था। यह कदम दर्शाता है कि मोरक्को सरकार धार्मिक परंपराओं और नागरिकों की भलाई के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास कर रही है। 

मोरक्को का यह निर्णय न केवल धार्मिक परंपराओं और आधुनिक चुनौतियों के बीच संतुलन का प्रतीक है, बल्कि यह पर्यावरणीय संकट और आर्थिक असमानताओं के प्रति संवेदनशीलता भी दर्शाता है। यह कदम अन्य देशों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में धार्मिक कर्तव्यों और नागरिकों की भलाई के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकता है।

 

ऐसी ही जानकारी के लिए विजिट करें- The India Moves

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