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राजस्थान के एक मंदिर में जहां होती है रावण की पूजा

राजस्थान के एक मंदिर में जहां होती है रावण की पूजा

Jodhpur 
लोकेश व्यास (जोधपुर): सूर्यनगरी जोधपुर राव जोधा की नगरी आज असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा आज पूरे देश में मनाया जाएगा और रावण का दहन किया जाएगा। इस दिन पूरा देश जहां खुशी मनाएगा वही जोधपुर में कुछ लोग ऐसे हैं जो दशानन के दहन का बाकायदा शोक मनाते हैं। यह लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं ऐसी मान्यता है कि मंदोदरी के साथ रावण का विवाह जोधपुर में हुआ था। उस समय बारात में आए कुछ लोग यहीं पर बस गए थे।  जोधपुर में दसानन लंकेश रावण ओर उसकी पत्नी मंदोदरी का मंदिर है और इस मंदिर को रावण वंसज ने बनाया है और नियमित रूप से रावण की पूजा करते हैं। इस मंदिर में रावण मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमा स्थापित है । दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है । उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए, पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे लेकिन वर्ष 2008 में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया । हम लोग रावण की पूजा कर उनके अच्छे गुणों को लेने का प्रयास करते हैं रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे ऐसे में कई संगीतज्ञ और वेद का अध्ययन करने वाले छात्र रावण का आशीर्वाद लेने इस मंदिर में आते हैं। दशहरा हमारे लिए शोक का प्रतीक है। इस दिन हमारे लोग रावण दहन देखने नहीं जाते हैं । शोक (सूतक) मनाते हैं शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है।  रावण के दर्शन करने के बाद भोजन किया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि असुरों के राजा मयासुर  हेमा नाम की अप्सरा की तरफ मोहित हो गए। हेमा को प्रसन्न करने के लिए उसने जोधपुर शहर के निकट मंडोर का निर्माण किया मयासुर और हेमा की बहुत सुंदर पुत्री का जन्म हुआ इसका नाम मंदोदरी रखा गया एक बार मायासुर का देवताओं के राजा इंद्र के साथ विवाद हो गया और उसे मंडोर छोड़कर भागना पड़ा उसके जाने के बाद मंडूक ऋषि ने मंदोदरी की देखभाल की अप्सरा की बेटी होने के कारण मंदोदरी बहुत सुंदर थी ऐसे रूपवती कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था आखिरकार उनकी खोज उस समय के सबसे बलशाली और पराक्रमी होने के साथ विद्धवान राजा रावण पर जाकर पूरी हुई । उन्होंने रावण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा मंदोदरी को देखते ही उस पर मोहित हो गया और शादी के लिए तैयार हो गए रावण की बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर पहुंचा। 

मान्यता है की मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी एक स्थान को लोग रावण की चवरी है (जहां पर वर-वधू फेरे लेते है) कहते हैं बाद में मंडोर को राठौड़ राजवंश ने मारवाड़ की राजधानी बनाया और सदियों तक शासन किया वर्ष 1458 मैं राठौड़ राजवंश में जोधपुर की स्थापना की बाद में अपनी राजधानी को बदल दिया। आज भी मंडोर में विशाल गार्डन आकर्षक का केंद्र है

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