
गणेश चतुर्थी पर जानें क्या है पौराणिक कथाएं और महत्व
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Manjushree
- August 26, 2025
गणेश चतुर्थी 2025 (Ganesh Chaturthi) की शुरुआत 27 अगस्त 2025 से शुरू होने जा रहा है। यह पर्व भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश उत्सव महाराष्ट्र में ही नहीं कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त शुभ समय देखकर गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना करते हैं और 10 दिनों तक भक्ति और उल्लास के साथ उनकी पूजा करते हैं।
गणेश चतुर्थी पर परंपरा
गणेश चतुर्थी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से आरंभ होती है और अनंत चतुर्दशी को समाप्त होती है। इस मौके पर गणेश जी का प्रिय भोग मोदक बनाया जाता है। जो चावल या आटे से बनाई जाती है जिसके अंदर गुड़, नारियल और सूखे मेवें भरे जाते हैं। भगवान गणेश को 21 मोदक का भोग लगाया जाता है। इस अवसर पर लोग दस दिनों तक घरों और पंडालों में गणेश प्रतिमाएँ स्थापित करते हैं। गणेश भगवान की मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापित की जाती है। दसवें दिन लोग बड़ी धूमधाम से ढोल नगाड़े के साथ, नारे लगाते हुए नदी या समुद्र में गणेश विसर्जन करते हैं।

गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की कथा
एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी। तब उन्होंने द्वार पर पहरेदारी करने के लिए अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया, और उसमें प्राण डालकर एक सुन्दर बालक का रूप दे दिया। माता पार्वती ने बालक से कहा कि मै स्नान करने जा रही हूँ, तुम द्वार पर खड़े रहना और बिना मेरी आज्ञा के किसी को भी द्वार के अंदर मत आने देना। यह कहकर माता पार्वती, उस बालक को द्वार पर खड़ा करके स्नान करने चली जाती हैं।
वह बालक द्वार पर पहरेदारी कर रहा होता है कि तभी वहां पर भगवान् शंकर जी अंदर जाने के लिए आ जाते हैं। जैसे ही भगवान शंकर अंदर जाने वाले होते है वह बालक उनको वहीँ रोक देता है। भगवान शंकर जी उस बालक को उनके रास्ते से हटने के लिए कहते हैं लेकिन वह बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए, भगवान शंकर को अंदर प्रवेश करने से रोकता है। जिसके कारण भगवान शंकर क्रोधित हो जाते हैं और क्रोध में अपनी त्रिशूल निकल कर उस बालक की गर्दन को धड़ से अलग कर देते हैं।

बालक की दर्द भरी आवाज को सुनकर जब माता पार्वती जब बाहर आती हैं, बालक के कटे सिर को देखकर बहुत दुखी हो जाती हैं। भगवान् शंकर को बताती है कि वो उनके द्वारा बनाया गया बालक था जो उनकी आज्ञा का पालन कर रहा था। माता पार्वती भगवान शंकर से अपने पुत्र को पुन: जीवित करने के लिए बोलती है।
भगवान शंकर अपने सेवकों को आदेश देते हैं कि वो धरतीलोक पर जाये और जिस बच्चे की माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो, उस बच्चे का सिर काटकर ले आये। सेवक जाते हैं, तो उनको एक हाथी का बच्चा दिखाई देता है। जिसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके सो रही होती है। सेवक उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आते है।
फिर भगवान् शंकर हाथी के सिर को उस बालक के सिर स्थान पर लगाकर उसे पुनः जीवित कर देते हैं। भगवान शंकर उस बालक को अपने सभी गणों को स्वामी घोषित करते देते है। तभी से उस बालक का नाम गणपति रखा गया। भगवान शंकर ने गणपति को देवताओ में सबसे पहले पूजने का वरदान भी दिया। इसीलिए हर काम को शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा के बिना कोई भी कार्य पूरा नहीं होता।
गणेश चतुर्थी का महत्व

वास्तव में, गणेश चतुर्थी सिर्फ भगवान गणेश के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह कई और महत्वपूर्ण बातों का प्रतीक भी है। गणेश जी के स्वरूप का प्रत्येक अंग हमें सही जीवन का ज्ञान देता है। जैसे कि गणेश जी का सिर बड़ा है, जो उनकी विशाल बुद्धि वा विराट प्रज्ञा का प्रतीक है। दूसरे, उनकी आंखें बहुत छोटी है, जो उनकी दूरदर्शिता को दर्शाती हैं। आपने देखा होगा, जब हम कोई दूर की चीज देखने का प्रयास करते हैं, तो हमारी आंखें छोटी हो जाती हैं। गणेश जी का मुंह छोटा दिखाते हैं। जो बुद्धिमान होगा, वह मुंह से कम, लेकिन यथार्थ बोलेगा। गणेश जी के कान बड़े हैं, जो यह बताते हैं कि सुनना अधिक है और बोलना कम। उनके कान सूप जैसे हैं और सूप की विशेषता है कि वह अच्छी चीजों को रखता है और कचरे को फेंक देता है। इसका अर्थ है कि हम अच्छी बातों को ग्रहण करें और व्यर्थ बातों को छोड़ दें।
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