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क्या है अमावस्या और पूर्णिमा का महत्व?

क्या है अमावस्या और पूर्णिमा का महत्व?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार अमावस्या और पूर्णिमा दोनों का ही अलग-अलग महत्व है और दोनों ही हिंदू कैलेंडर के अलग-अलग पक्ष से जुड़े हुए हैं। जहां शुक्ल पक्ष के 15 दिन पूर्णिमा का आगमन होता है, वहीं कृष्ण पक्ष खत्म होने के बाद ठीक 15 दिन अमावस्या आती है। हिंदू पंचांग के अनुसार महीने के 30 दिन को चंद्रकला के आधार पर 15-15 दिनों में बांटा गया है, जिसमें 15 दिन शुक्ल पक्ष के और 15 दिन कृष्ण पक्ष के कहलाते हैं।

 

1) साल में कितनी अमावस्या और कितनी पूर्णिमा आती है?

शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन यानी 15 दिन को पूर्णिमा कहा जाता है और वहीं अगर कृष्ण पक्ष की बात करें तो कृष्ण पक्ष के यानी अंधेरे पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या का माना जाता है। इसका साफ अर्थ है कि साल में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या पड़ती है। शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के बाद हिंदू कैलेंडर का महीना बदल जाता है। कभी-कभी यह संख्या तिथि और कैलेंडर के मुताबिक बढ़ भी जाती है।

 

2) पूर्णिमा और अमावस्या के बीच क्या अंतर है?

पूर्णिमा और अमावस्या के बीच मूल अंतर यह है कि पूर्णिमा को शुभ माना जाता है, जबकि अमावस्या को शुभ नहीं माना जाता। पूर्णिमा पर ध्यान पूजा-पाठ करने की सलाह दी जाती है, वहीं अमावस्या पर आप पितरों के लिए दान, यज्ञ, हवन कर सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या की रात को तंत्र और आसुरी शक्तियां बहुत प्रबल हो जाती हैं।

 

3) पूर्णिमा और चंद्रमा का एक दूसरे से क्या संबंध है?

किसी भी कार्य और व्यवसाय आदि को शुरू करने के लिए पूर्णिमा के दिन को बहुत शुभ माना गया है। शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा होती है, जो शुभ कार्य और उपासना के लिए उत्तम मानी जाती है। वहीं अगर कृष्ण पक्ष की बात करें, जिसे कला पक्ष भी कहा जाता है, किसी भी शुभ कार्य को करने से बचने के लिए सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण पक्ष में कोई भी शुभ काम करना वर्जित है।

ज्योतिष में ऐसा कहा जाता है कि चंद्रमा मन के देवता हैं। शास्त्रों के मुताबिक चंद्रमा पर नियंत्रण रहता है। हमारे मन के भावों को चंद्रमा ही नियंत्रित करता है। चंद्रमा के दर्शन पूर्णिमा के दिन होते हैं, जबकि उजला पक्ष माना जाता है। वहीं अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा एक राशि में होते हैं और चंद्रमा इस समय अस्त माना जाता है। वहीं अगर अमावस्या की बात करें, अमावस्या के दिन तमाम आसुरी  शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। इस दौरान   तांत्रिक अपनी तंत्र क्रियाएं करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अमावस्या के दिन व्यक्ति को बुरे कर्म और नकारात्मक विचारों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। अमावस्या के दिन शरीर की पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है और साथ ही इस दिन गर्भधारण करने से भी बचना चाहिए।

 

4) क्यों अमावस्या को ही काली रात कहा जाता है?

पूर्णिमा शुभ तत्व और गुण से युक्त होती है और अमावस्या का संदर्भ काली रात से होता है, जो नकारात्मक और आसुरी शक्ति के प्रबल होने का घोतक है। अमावस्या के दिन जहां कुछ खास अनुष्ठान और प्रक्रिया करने के लिए अच्छा माना जाता है, वहीं पूर्णिमा व्रत, उपवास और पूजा करने के लिए उत्तम मानी गई है। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या की रात उग्र होती है, इसलिए तांत्रिक लोग अमावस्या की रात को ही तंत्र विद्या में अधिक संलग्न रहते हैं। अमावस्या की ऊर्जा अधिक बुनियादी होती है। अमावस्या की प्रकृति अधिक स्थूल और अधिक शक्तिशाली होती है। पूर्णिमा की रात जहां सौम्यता और शीतलता का प्रतीक है, वहीं अमावस्या नकारात्मकता और तंत्र साधना के लिए उत्तम मानी गई है।

 

5) पूर्णिमा है सतोगुण का प्रतीक

पूर्णिमा में जहां सूक्ष्म, सुखद, सुंदर और स्वामिता का गुण है, वहीं अमावस्या की ऊर्जा अधिक बुनियादी होती है। पूर्णिमा जहां आपकी सकारात्मक शक्ति आपकी कुंडली को जाग्रत करती है, वहीं अमावस्या नकारात्मक क्रियाएं, शोर, हिंसा और तंत्र साधना को बढ़ावा देती है। चंद्रमा की मौजूदगी इतनी साफ होती है कि आप जिधर भी देखेंगे, आपको सब कुछ चमकीला दिखेगा, जो मन में एक अलग ऊर्जा का प्रभाव पैदा करता है। अमावस्या के दिन चावल, सफेद तेल, वस्तुओं का दान करना और संध्या के समय पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाने से पितृपक्ष संतुष्ट होता है। पूर्णिमा के दिन श्रृंगार का दान करने से पति और संतान की आयु लंबी होती है। इस दिन जरूरतमंदों को अन्य वस्त्र, तेल आदि का दान करना चाहिए। पूर्णिमा के दिन भगवान श्री सत्यनारायण की पूजा का भी विधान है। ऐसा कहा जाता है कि जो मनुष्य पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा-अर्चना करता है और व्रत के नियम का पालन करता है, वह शारीरिक और मानसिक तकलीफों से मुक्त रहता है। वैसे तो सभी पूर्णिमाओं के नाम महीनों  के नाम पर ही रखे जाते हैं, जैसे चंद्रमा की चैत्र पूर्णिमा और फागण मां की फागण पूर्णिमा, मगर कुछ पूर्णिमा के विशेष नाम भी दिए गए हैं और इन सभी पूर्णिमाओं का अलग-अलग महत्व माना गया है।

 

चैत्र मास की पूर्णिमा

चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था, इसलिए कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कुछ लोग इस दिन को प्रेम पूर्णिमा भी कहते हैं।

 

वैशाख पूर्णिमा

वैशाख पूर्णिमा के अलावा इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। वैशाख पूर्णिमा  के दिन सूर्य अपनी उच्च राशि में मेष में और चंद्रमा भी अपनी उच्च राशि तुला में रहते हैं। मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करके दान-पुण्य करने से कुंभ में स्नान के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को पीपल पूर्णिमा कहते हैं, तो इस दिन पीपल की पूजा करने से ग्रह और पितृ दोष का निवारण होता है। वैशाख पूर्णिमा के दिन धर्मराज का व्रत रखा जाता है।

 

ज्येष्ठ पूर्णिमा

ज्येष्ठ के महीने की पूर्णिमा को देव स्नान पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थ स्थान, दान और व्रत करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री का व्रत करती हैं और बरगद के पेड़ की उपासना करती हैं। इसलिए इसे वट पूर्णिमा भी कहा जाता है।

 

आषाढ़ पूर्णिमा

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन से अगले 4 माह तक अध्ययन, ध्यान और साधना के लिए यह समय उत्तम माना गया है। इस दिन महर्षि वेदव्यास जी की पूजा खास महत्व रखती है। साथ ही इस दिन गुरु-शिष्य परंपरा के चलते गुरु और शिक्षकों का सम्मान किया जाता है।

 

श्रावण पूर्णिमा
श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है और हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण पूर्णिमा को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है।

 

भाद्रपद पूर्णिमा

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन व्यक्ति स्नान, दान और व्रत करके अपने जीवन के तमाम कष्टों से छुटकारा पा सकता है। इसके साथ ही 16 दिनों का श्राद्ध पक्ष भी भागवत पूर्णिमा से शुरू हो जाता है। साथ ही भाद्रपद पूर्णिमा के दिन महिलाएं उमा में ईश्वर का व्रत रखती हैं और शिव और पार्वती की पूजा करती हैं।

श्विनी पूर्णिमा
अश्विनी पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है, जिसका विशेष महत्व माना गया है। इस दिन चांद नीला दिखाई देता है। अश्विनी पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी में दूध या खीर को रखकर खाने का महत्व है। इस दिन कुबेर देवता की भी पूजा का महत्व माना गया है। अश्विनी मास की शरद पूर्णिमा से ही कार्तिक मास के स्नान-दान के नियम भी शुरू हो जाते हैं।

 कार्तिक पूर्णिमा
इसे कार्तिक के अलावा त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन दीपदान और विष्णु पूजा का खास महत्व है। पुराने के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को शिवजी ने त्रिपुर नामक राक्षस का संघार किया था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन पुष्कर में मेला लगता है और इसी दिन दान आदि करने का भी प्रावधान माना गया है।

मार्गशीर्ष  पूर्णिमा
मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन दत्तात्रेय विद्यार्थी भी बनाई जाती है और इसे अगहन पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गंगा आदि पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान-दान करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

पौष   पूर्णिमा
पौष की पूर्णिमा के दिन बनारस में दशा सम्मिट तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान करने का बहुत महत्व है। इस दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है और जैन धर्म में पुष्य अभिषेक यात्रा प्रारंभ हो जाती है।

माघ   पूर्णिमा
माघ के महीने में दान-दक्षिणा का 32 गुना फल मिलता है, इसलिए इसे माघी पूर्णिमा के अलावा बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। माघ माह में अक्षर कुंभ का आयोजन होता है। मां की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती और भैरव जयंती मनाई जाती है।

फाल्गुन  पूर्णिमा
फाल्गुनी पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर का अंतिम दिन है। इसके अगले दिन से नव वर्ष प्रारंभ हो जाता है। फागुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

पूर्णिमा से जुड़ी कुछ खास बातें
पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या, हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं। इस दिन किसी भी प्रकार के तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ध्यान रखें कि पूर्णिमा के दिन शराब आदि नशे से दूर रहें। इससे शरीर पर ही नहीं, बल्कि भविष्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है। इन कर्मों से शरीर के अंदर रक्त में न्यूरो सेल क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक हो जाता है। और ऐसा एक पूर्णिमा पर नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा पर होता है। वह व्यक्ति जनपद चंद्रमा के प्रभाव में ज्यादा होता है। ऐसे व्यक्तियों को पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से जुड़ी वस्तुएं, जैसे दूध, चावल, जल का दान करने की सलाह दी जाती है।

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