
Wildlife Update : 50 सालों में वन्यजीवों की आबादी 73 फीसदी घटी, गिद्धों की प्रजाति पर भी मंडराया संकट
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Anjali
- October 11, 2024
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की एक नई लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट 2024 में यह खुलासा हुआ है कि महज 50 सालों में जिन्हें संरक्षण की जरूरत है ऐसे वन्य जीवों की आबादी में 73 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। लंदन की जूलॉजिकल सोसायटी ने लिविंग प्लैनेट इंडेक्स रिपोर्ट 2024 में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पृथ्वी पर मानव जीवन को भी खतरे में डालने वाली स्थितियां बढ़ रही है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF)-इंडिया ने इस रिपोर्ट पर गंभीर चिंता जाहिर की है।
वन्यजीवों की आबादी में गिरावट
लंदन की जूलॉजिकल सोसायटी (ZSL) द्वारा जारी लिविंग प्लैनेट इंडेक्स में यह दर्शाया गया है कि 1970 से 2020 के बीच 5,495 जीवों की लगभग 35,000 आबादी में कमी आई है। जीवों की आबादी में गिरावट की एक महत्वपूर्ण वजह खान-पान के सिस्टम में बदलाव भी है। साथ ही अधिक लाभ की प्रवृत्ति, जैसे औद्योगिकीकरण, कृषि के बड़े पैमाने पर विस्तार और शहरीकरण, ने वन्यजीवों के पर्यावास को गंभीर क्षति पहुँचाई है। इसके साथ ही, आक्रामक प्रजातियों का प्रवेश और विभिन्न बीमारियाँ भी स्थिति को और बिगाड़ रही हैं। एशिया और प्रशांत क्षेत्र में प्रदूषण एक और संकट है, जिसके चलते जीव की आबादी में औसत 60% की गिरावट आई है। वन्यजीवों की आबादी में गिरावट वास्तव में उनके लुप्त होने के बढ़ते खतरे का शुरुआती संकेत है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (WWF)इंटरनेशनल के डायरेक्टर जनरल कर्स्टन शूइट के अनुसार प्रकृति संकट का संकेत दे रही है। प्रकृति को हो रहे नुकसान और जलवायु परिवर्तन के संकट ने वन्यजीवों के लिए एक गंभीर स्थिति पैदा कर दी है।
संकट के बीच राहत की किरण
भारत में वन्यजीवों की आबादी में गिरावट के बावजूद कुछ प्रजातियों की आबादी स्थिर रहने में सफल रही है। बाघ दुनिया भर में सबसे ज्यादा भारत में पाए जाते हैं। लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण वेटलैंड्स से मिलने वाले महत्वपूर्ण लाभ जैसे पानी को रोकना, ग्राउंडवाटर रिचार्ज और बाढ़ पर नियंत्रण की क्षमताएँ काफी कम हो गई थी। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के जनरल सेक्रेट्री और सीईओ रवि सिंह के अनुसार, लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024 में प्रकृति, जलवायु और मानव कल्याण के परस्पर संबंध के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। अगले पांच सालों में हमारे विकल्प और कार्य पूरी प्रथ्वी के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे।
भारत में गिद्धों की प्रजाति पर मंडराया संकट
भारत में गिद्धों की तीन प्रजातियों- जिप्स बेंगालेंसिस(Gyps bengalensis), भारतीय गिद्ध (Indian vulture) और पतली चोंच वाले गिद्ध ((Gyps tenuirostris) की आबादी में आई भारी गिरावट चिंताजनक है। शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि गिद्धों की प्रजातियों की आबादी में विशेष रूप से 1992 से 2020 के बीच गंभीर गिरावट आई है। 2022 में बीएनएचएस ने देशभर में गिद्धों के अपने सर्वेक्षण में इस गिरावट की बात कही थी। इसके अनुसार सफेद पूंछ वाले गिद्धों की आबादी में 67%, भारतीय गिद्धों की आबादी में 48% और पतली चोंच वाले गिद्धों की आबादी में 2002 की तुलना में 89% की भारी गिरावट आई है।
पर्यावरण का नुकसान है खतरनाक
रिपोर्ट में यह महत्वपूर्ण बिंदु उठाया गया है कि पर्यावरण का नुकसान और जलवायु परिवर्तन मिलकर स्थानीय और क्षेत्रीय पारिस्थितिक तंत्रों में गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं। जब पर्यावरणीय परिवर्तन एक निश्चित स्तर तक पहुँच जाते हैं, तो वे अक्सर स्थायी हो जाते हैं और उन्हें पलटा नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए, चेन्नई में तेजी से बढ़ते शहरी विस्तार की वजह से इसके वेटलैंड एरिया में 85 फीसदी की कमी आई है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक, इन आर्द्रभूमियों की वजह से जल प्रतिधारण, भूजल पुनर्भरण और बाढ़ नियंत्रण में भारी कमी आई है।
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