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भारत-चीन सीमा व्यापार, लिपुलेख दर्रे को लेकर नेपाल की आपत्ति पर विवाद

भारत-चीन सीमा व्यापार, लिपुलेख दर्रे को लेकर नेपाल की आपत्ति पर विवाद

भारत-चीन सीमा व्यापार (India-China border trade) को फिर से शुरू करने पर नेपाल (Nepal) ने आपत्ति जताई है। भारत के विदेश मंत्रालय ने नेपाल की आपत्तियों को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से भारत-चीन के बीच सीमा व्यापार की शुरुआत वर्ष 1954 में हुई थी, जो कई दशकों से निर्बाध रूप से चलता आ रहा है।

लिपुलेख दर्रा और भारत-चीन सीमा व्यापार का परिप्रेक्ष्य

बता दें कि भारत-चीन सीमा व्यापार (India-China border trade) का इतिहास 1954 से शुरू होता है जब लिपुलेख दर्रा (Lipulekh Pass) पहली बार व्यापारिक मार्ग के रूप में उपयोग में लाया गया। माना जाता है कि यह दर्रा भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है और भारत-चीन सीमा व्यापार (India-China border trade) के लिए एक रणनीतिक बिंदु माना जाता है। हाल ही में जब भारत और चीन ने इस मार्ग के माध्यम से फिर से व्यापार शुरू करने की घोषणा की, तो नेपाल ने इस पर आपत्ति जताई और दावा किया कि लिपुलेख दर्रा (Lipulekh Pass) उसके क्षेत्राधिकार में आता है।
भारत-चीन सीमा व्यापार (India-China border trade) को पुनः शुरू करने का निर्णय कोविड महामारी के कारण उत्पन्न व्यवधानों के बाद आया है। भारत और चीन ने तीन प्रमुख व्यापारिक बिंदुओं यानी लिपुलेख दर्रा(Lipulekh Pass) , शिपकी ला दर्रा, और नाथू ला दर्रा को खोलने पर सहमति जताई है, जो चीन-भारत समझौता (China-India Agreement) का एक भाग है।


नेपाल की आपत्ति पर भारत का जवाब


नेपाल सरकार ने भारत और चीन दोनों से आग्रह किया है कि वे लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) के माध्यम से कोई भी व्यापारिक गतिविधि न करें। नेपाल का तर्क है कि- यह क्षेत्र उसके ऐतिहासिक मानचित्रों और संधियों के अनुसार उसकी संप्रभुता में आता है। वहीं दूसरी ओर भारत ने नेपाल के क्षेत्रीय दावों को अस्वीकार कर दिया है। बता दें कि भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल (Randhir Jaiswal) ने स्पष्ट किया कि- लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) के माध्यम से भारत-चीन सीमा व्यापार (India-China border trade) 1954 से जारी है और यह कोई नया या विवादास्पद कदम नहीं है। उन्होंने कहा कि नेपाल (Nepal) के दावे न तो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हैं और न ही वैध साक्ष्यों पर।

 

इसके अलावा उन्होंने यह भी दोहराया कि भारत, नेपाल के साथ सभी लंबित सीमा विवादों को शांतिपूर्ण और कूटनीतिक तरीके से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है, जो कि एक सकारात्मक संकेत है कि नेपाल-भारत संबंध (Nepal-India relation) अभी भी बातचीत की दिशा में आगे भी बढ़ सकते हैं।


चीन-भारत समझौता और रणनीतिक महत्व क्या ?


चीन-भारत समझौता (China-India Agreement) जो हाल ही में चीनी विदेश मंत्री (Chinese Foreign Minister) वांग यी (Wang Yi) की भारत यात्रा के दौरान हुआ, जिसके अंतर्गत यह तय किया गया कि- तीन प्रमुख दर्रों के माध्यम से व्यापार दोबारा शुरू होगा। इसमें लिपुलेख दर्रा (Lipulekh Pass) विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत के लिए एक रणनीतिक व्यापारिक और तीर्थ यात्रा मार्ग (मानसरोवर यात्रा) का हिस्सा भी है। इसी के साथ यह भारत-चीन सीमा व्यापार (India-China border trade) केवल आर्थिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वहीं दोनों देशों ने आपसी व्यापारिक सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से यह कदम उठाया है, जिससे सीमा क्षेत्रों में स्थिरता और विकास को बढ़ावा मिलेगा।

नेपाल-भारत संबंधों पर प्रभाव

नेपाल-भारत संबंध (Nepal-India relation) ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ माने जाते है, लेकिन सीमाओं को लेकर समय-समय पर विवाद सामने आते रहे हैं। लिपुलेख दर्रा (Lipulekh Pass) एक ऐसा ही मुद्दा है जो दोनों देशों के बीच विश्वास की परीक्षा बनता जा रहा है। हाल ही में दोनों देशों ने कूटनीतिक समाधान की बात कही है, परंतु भारत-चीन (India-China) के बीच इस दर्रे से व्यापार फिर शुरू होने से नेपाल की असहमति एक नई चुनौती बन सकती है। इसी बीच भारत-चीन सीमा व्यापार (India-China border trade) के फिर से शुरू होने से क्षेत्रीय स्थिरता को बल मिल सकता है, लेकिन अगर नेपाल के साथ बातचीत नहीं हुई, तो इससे नेपाल-भारत संबंध (Nepal-India relation) प्रभावित हो सकते हैं।

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